09 May 2025
भारत जैसे विशाल और विविधताओं से भरे देश में जनगणना सिर्फ जनसंख्या की गिनती नहीं होती, बल्कि यह देश की सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक दिशा तय करने का एक सशक्त माध्यम भी होती है। हर 10 वर्षों में होने वाली यह प्रक्रिया लाखों कर्मचारियों और हजारों करोड़ रुपये के बजट के साथ संपन्न होती है। लेकिन क्या अब समय नहीं आ गया है कि इस विशालतम डेटा संग्रह प्रणाली को डिजिटल युग की ओर अग्रसर किया जाए?
आज जब बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य, वोटिंग, रेलवे बुकिंग, आधार कार्ड और पासपोर्ट तक की सेवाएं डिजिटल हो चुकी हैं, तब जनगणना जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया को भी ऑनलाइन और तकनीकी रूप से सक्षम बनाना समय की माँग है।
भारत सरकार के पास सैकड़ों विभाग हैं—स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक न्याय, महिला एवं बाल विकास, ग्रामीण विकास, नगर निकाय, राजस्व, कृषि, श्रम और रोज़गार, गृह मंत्रालय आदि। इन विभागों को समय-समय पर अलग-अलग सर्वेक्षण, फॉर्म और जनगणनाएँ करनी पड़ती हैं। इससे न केवल संसाधनों की बर्बादी होती है, बल्कि डेटा असंगत और अपूर्ण भी रहता है।
यदि एक ही बार में एक विस्तृत डिजिटल जनगणना आयोजित की जाए, तो देश की समस्त सामाजिक और आर्थिक स्थिति का समग्र डेटा एक स्थान पर उपलब्ध हो सकता है, जिससे नीतियाँ बनाना, योजनाओं को लागू करना और लाभार्थियों तक पहुंच सुनिश्चित करना अधिक सुगम हो जाएगा।
डिजिटल जनगणना के दौरान नागरिकों से विस्तृत जानकारी मांगी जानी चाहिए, जिससे सरकार की योजनाएं और नीतियां अधिक प्रभावी बन सकें। उदाहरणस्वरूप:
एशिया के कई देशों ने ट्रांसजेंडर समुदाय को सम्मानजनक स्थिति दी है। भारत को भी यह दिखाना होगा कि वह अपने सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है।
जनगणना प्रक्रिया को एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस) के डाटा इनपुट और सैंपल सर्वे ढांचे से जोड़कर और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है। इससे न केवल आंकड़े बेहतर और वैज्ञानिक होंगे, बल्कि भविष्य की योजनाओं और अनुसंधान कार्यों में भी इसकी उपयोगिता बढ़ेगी। एनएसएसओ द्वारा वर्षों से एकत्रित सैंपल डेटा का मिलान अगर जनगणना के विस्तृत डेटा से हो, तो कई सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों का अनुमान लगाया जा सकता है एवं उनका उचित निराकरण भी किया जा सकता है।
इन सूचनाओं को पहले से उपलब्ध सरकारी डेटाबेस जैसे UIDAI, NSDL, चुनाव आयोग, परिवहन विभाग, और राजस्व विभाग से आंशिक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।
यह एक उचित प्रश्न है कि भारत के कई ग्रामीण और तकनीकी रूप से पिछड़े क्षेत्र अभी डिजिटल साक्षरता से दूर हैं। लेकिन इसका समाधान यह नहीं है कि डिजिटल जनगणना न की जाए, बल्कि इसका हल यह है कि जो नागरिक स्वयं जानकारी भर सकते हैं, वे ऑनलाइन भरें, और जो नहीं भर सकते, उनका डेटा जनगणना ड्यूटी में लगे सरकारी कर्मचारी या अधिकारी भरें।
यह हाइब्रिड मॉडल हमारे देश की विविधताओं को ध्यान में रखते हुए अधिक उपयुक्त और व्यावहारिक होगा।
जब जनगणना डिजिटल होगी, तो जाति, धर्म, उपजाति, शैक्षणिक योग्यता, पेशा और आय के आंकड़े भी स्वचालित रूप से प्राप्त हो सकेंगे। इससे नीति निर्धारण और आरक्षण की समीक्षा जैसे संवेदनशील विषयों पर पारदर्शी और सटीक निर्णय लिए जा सकेंगे।
सरकार के पास पहले से अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची है, जिसे जनगणना फॉर्म में ड्रॉपडाउन के रूप में जोड़ा जा सकता है। इससे लोग अपनी जाति से संबंधित जानकारी एकरूपता से भर सकेंगे।
डेटा सुरक्षा और गोपनीयता इस प्रक्रिया का मूल हिस्सा होना चाहिए। फॉर्म को एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन, मल्टीफैक्टर ऑथेंटिकेशन, और सिर्फ वैध सरकारी उपयोग के लिए सीमित करना आवश्यक है। साथ ही डेटा का भंडारण भारत के भीतर ही होना चाहिए।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने डिजिटल इंडिया, जीएसटी, और आधार जैसी ऐतिहासिक पहलें की हैं। अब समय आ गया है कि जनगणना जैसे सबसे बड़े डेटा संग्रह को भी तकनीकी रूप से सक्षम बनाया जाए।
हमारा सरकार से आग्रह है कि 2025 या उसके पश्चात होने वाली जनगणना को डिजिटल माध्यम से भी अनिवार्य रूप से संचालित किया जाए। इससे एक ऐसा डेटा बैंक तैयार होगा जो भारत को योजनाओं, पारदर्शिता, जवाबदेही और विकास की नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा।
धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक, इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
पूर्व उपाध्यक्ष, जयपुर स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com
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Rtn. Suneel Dutt Goyal