25 November 2024

राज्य और केंद्र सरकारों की शिक्षा नीति “वन इंडिया, वन एजुकेशन” होनी चाहिए। जिस तरह केंद्रीय विद्यालयों में पूरे भारत में एक ही यूनिफॉर्म/ड्रेस कोड और सिलेबस है, छुट्टियों से लेकर पढ़ाई के समय तक एक समान हैं, उसी मॉडल को पूरे देश के प्राइवेट स्कूलों में भी लागू करना चाहिए। यह पहल न केवल शिक्षा प्रणाली में समानता लाएगी, बल्कि छात्रों के लिए बेहतर अवसरों का द्वार भी खोलेगी।
शिक्षा के उद्देश्य और संसाधनों का बेहतर उपयोग
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन स्कूलों को रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराई गई है, वे उन संसाधनों का उपयोग शिक्षा के उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं। हमारा सभी शिक्षण संस्थानों से यह निवेदन है कि वे भूमि और भवन का गैर-शिक्षण कार्यों में उपयोग करने से बचें और उनका अधिकतम उपयोग बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए ही करें। ऐसा करने से सरकार के साथ उनका बेहतर सामंजस्य बना रहेगा।
उदाहरण के लिए, कई स्कूलों ने सरकार से मिली जमीन का उपयोग आधुनिक प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों और खेल सुविधाओं के निर्माण में किया है, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक साबित हुए हैं। हालांकि, ऐसा करने वाले शैक्षणिक संस्थानों की संख्या बहुत कम है। उम्मीद की जाती है कि अन्य शिक्षण संस्थान भी जमीन का उपयोग सरकार से किए गए वायदे के मुताबिक ही करें, जिससे छात्रों के जीवन में सुधार हो और राष्ट्र निर्माण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो।
यदि कुछ जमीन वर्तमान में खाली है, तो उसे बेहतर योजनाओं के तहत उपयोग में लाने के सुझाव दिए जा सकते हैं। इन जमीनों पर वंचित बच्चों के लिए विशेष शैक्षणिक केंद्र या कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जा सकते हैं। यह न केवल शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करेगा, बल्कि समाज में समावेशी विकास को भी बढ़ावा देगा।
स्कूल प्रबंधन और सरकार के बीच सहयोग से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि उपलब्ध संसाधन अधिक छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए उपयोग हों। यह न केवल शिक्षा क्षेत्र को मजबूत करेगा, बल्कि स्कूलों की सकारात्मक छवि भी बनाएगा।
निजी स्कूलों की भूमिका
निजी स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वे छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा और आधुनिक सुविधाएं प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ निजी स्कूल डिजिटल क्लासरूम, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म और विदेशी भाषाओं के अध्ययन के लिए विशेष कार्यक्रम चलाते हैं। ये पहल छात्रों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार करती हैं।
हालांकि, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी पारदर्शिता हो। स्कूल प्रबंधन को सरकार के साथ मिलकर एक पारदर्शी रूपरेखा तैयार करनी चाहिए, जिससे वे अपने शिक्षा से संबंधित उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सकें। इससे छात्रों और अभिभावकों का विश्वास भी बढ़ेगा।
फीस और पाठ्यपुस्तकों में समानता
फीस और पाठ्यपुस्तकों की कीमतों में संतुलन बनाए रखने के लिए सरकार और स्कूल प्रबंधन को एक पारदर्शी प्रणाली लागू करनी चाहिए। केंद्रीय विद्यालय की तरह, निजी स्कूलों में भी एक ही सिलेबस और पूरे भारत में एक समान शुल्क लागू किया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, जरूरतमंद छात्रों को किताबें और अन्य शैक्षणिक सामग्री कम या बिना शुल्क के उपलब्ध कराने के लिए सरकार और निजी स्कूल मिलकर एक तंत्र विकसित कर सकते हैं। यह कदम शिक्षा के अधिकार को सशक्त करेगा।
व्यापार एवं उद्योग जगत और विद्यार्थियों को लाभ
“वन नेशन, वन एजुकेशन” नीति का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि विद्यार्थी पूरे देश में समान स्तर की शिक्षा प्राप्त करेंगे। इससे व्यापार और उद्योग जगत को भी फायदा होगा, क्योंकि नौकरी के लिए आवेदन करने वाले सभी छात्रों का शैक्षणिक स्तर समान होगा।
रोजगार उपलब्ध करवाने वाले व्यापार एवं उद्योग जगत के मानव संसाधन विभाग को यह विश्वास होगा कि सभी राज्यों के छात्र “वन इंडिया, वन एजुकेशन” नीति के तहत समान शैक्षिक मानकों का पालन कर रहे हैं। इससे रोजगार के अवसरों में भी समानता सुनिश्चित होगी और छात्रों को एक समान स्तर पर आंका जाएगा।
सुझाव
सरकार को “वन नेशन, वन एजुकेशन सिलेबस” नीति को लागू करना चाहिए। सभी स्कूलों में एक समान सिलेबस और यूनिफॉर्म लागू होने से शिक्षा प्रणाली अधिक संगठित और समान हो जाएगी। केंद्रीय विद्यालयों की सफलता इस बात का प्रमाण है कि यह मॉडल पूरे देश में लागू किया जा सकता है।
इसके अलावा, स्कूल प्रबंधन और सरकार को साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि शिक्षा का स्तर ऊंचा उठ सके और अधिक छात्रों को लाभ मिल सके। एक समर्पित कमेटी का गठन कर सभी स्कूलों की गतिविधियों की समीक्षा और संसाधनों के उपयोग की निगरानी की जा सकती है।
आज पूरे भारत देश में एक आम धारणा जनता में बन चुकी है कि निजी स्कूल केवल ड्रेस और किताब बेचने का कारोबार में ज्यादा ध्यान देते हैं | इस प्रकार की नकारात्मक छवि से बचने के लिए स्कूलों को भी अपने कार्यप्रणाली में परिवर्तन करने की जरूरत है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा में वृद्धि हो और विद्यार्थियों के परिजन भी उनको और सम्मान की दृष्टि से देखें। ऐसा करने से दोनों ओर से परस्पर सामंजस्य स्थापित होगा और एक दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान भी बढ़ेगा।
हमारा अनुरोध है कि निजी स्कूल राष्ट्र निर्माण के लिए अपना योगदान दें। सरकार द्वारा रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराए जाने के बाद यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे छात्रों को उच्चतम स्तर की शिक्षा प्रदान करें और उन्हें वास्तविक जीवन के लिए तैयार करें।
इस दृष्टिकोण से, स्कूल प्रबंधन और सरकार के बीच सहयोग मजबूत होगा, शिक्षा का उद्देश्य प्रभावी ढंग से पूरा होगा, और समाज के सभी वर्गों के छात्रों को समान अवसर प्रदान किए जा सकेंगे। यह कदम एक उज्जवल और समावेशी भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।
धन्यवाद,
सुनील दत्त गोयल
महानिदेशक
इम्पीरियल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
जयपुर, राजस्थान
suneelduttgoyal@gmail.com
Blogs/Topics
Rtn. Suneel Dutt Goyal